शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

वह सुनयना थी,,,( विक्रम सिंह )


वह सुनयना थी,
कभी चोरी-चोरी मेरे कमरे मे आती
नटखट बदमाश
मेरी पेन्सिले़ उठा ले जाती
और दीवाल के पास बैठकर
अपनी नन्ही उगलियों से
भीती में चित्र बनाती

अनगिनत-अनसमझ, कभी रोती कभी गाती
वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
मुझे देख सकुचाई थी

नव-पल्लव सी अपार शोभा  लिये
पलक संपुटो में लाज को संजोये
सुहाग के वस्त्रों में सजी
उषा की पहली किरण की तरह
कॉप रही थी

जाने से पहले मांगनें आयी थी ,वात्सल्य भरा प्यार
जो अभी तक मुझसे पा रही थी
वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
दबे पाँव
डरी सहमी सी
उस कबूतरी की तरह
जिसके कपोत को बहेलिये ने मार डाला था
संरक्षण विहीन
भयभीत मृगी के समान
मेरे आगोश में समां गयी थी
सर में पा ,मेरा ममतामईं हाथ
आँसुओं के शैलाब से
मेरा वक्षस्थल भिगा गयी थी
सफेद वस्त्रों में उसे देख ,मैं समझ गया था
अग्नि चिता में
वह अपना
सिंदूर लुटा आयी  थी
वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
नहीं इस बार दरवाजे पर
दबे पाँव नहीं
कोई आहट नहीं
कोई आँसू नहीं
सफेद चादर से ढकी
मेरे ड्योढी में पडी थी
मैं आतंकित सा,काँपते  हाथों से
उसके सर से चादर हटाया था
चेहरे पे अंकित थे वे चिन्ह
जो उसने, वासना के
सडे-गले हाथो से पाया था
मैने देखा
उसकी आँखों में शिकायत नहीं,स्वीकृति थी
जैसे वह मौन पड़ी कह रही हो
हे पुरूष, तुम हमें
माँ
बेटी
बहन
बीबी
विधवा
और वेश्या बनाते हो
अबला नाम भी तेरा दिया हैं
शायद इसीलिए
अपने को समझ कर सबल
रात के अँधेरे में,रिश्तो को भूल कर
भूखे भेडिये की तरह
मेरे इस जिस्म को, नोच-नोच खाते हो,
क्या कहाँ ,शिक़ायत और तुझसे
पगले, शायद तू भूलता है,
मैने वासना पूर्ति की साधन ही नहीं-
तेरी जननी भी हूँ
और तेरी संतुष्ति,मेरी पूर्णता की निशानी हैं
मैं सहमा सा पीछे हट गया
उसकी आँखों में बसे इस सच को,मैं नहीं सह सका
और वापस आ गया ,अपने कमरे में
शायद मैं फिर करूँगा इंतजार
किसी सुनयना का
वह सुनयना थी,,,,,,,


अभी हाल में हुई  दिल्ली की घटना ने पूरे देश को सोचने के लिए मजबूर कर दिया,कुछ इसी परिपेक्ष पर विक्रम सिंह    की ये रचना आप लोगो के साथ साझा कर रहा हूँ ,,,,,,,
















55 टिप्‍पणियां:

  1. गहन अभिव्यक्ति... साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...

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  2. दामिनी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि और विक्रम सिंह जी की कलम को सादर नमन

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  3. दामिनी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि और विक्रम सिंह जी की कलम को सादर नमन

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  4. झकझोरती काव्य रचना साझा करने के लिए धन्यवाद !!

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  5. BEHAD GAMBHIR RACHNA,वह फिर आयी थी मेरे कमरे में
    मुझे देख सकुचाई थी
    नव-पल्लव सी अपार शोभा लिये
    पलक संपुटो में लाज को संजोये
    सुहाग के वस्त्रों में सजी
    उषा की पहली किरण की तरह
    कॉप रही थी
    जाने से पहले मांगनें आयी थी ,वात्सल्य भरा प्यार
    जो अभी तक मुझसे पा रही थी

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  6. शानदार लिखा है विक्रम सिंह जी ने

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  7. गहन अभिव्यक्ति... आपका बहुत-बहुत आभार...

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  8. दिल को झकझोर देने वाली रचना, बिक्रम सिंह जी को सादर अभिनन्दन।आपने ऐसी मार्मिक रचना को साझा किया,इसके लिए आभार।

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  9. अपनी धरोहरों को सम्हालने वाली सुनयना से कैसा बर्ताव कर रहे हैं हम।

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  10. बड़ा ही दिलकश लिखा है। जो सोचने को मजबूर कर देता है। चंद अलफ़ाज़ में बहुत सारे जज़्बात छुपे हैं।

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  11. आदरणीय धीरेन्द्र सर ह्रदय को खंड-२ कर देने वाली बेहद मार्मिक रचना, आपने हम सब के साथ साझा किया आपको अनेक-२ धन्यवाद. सादर

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  12. अन्तस् को उद्वेलित करती हुयी रचना !

    साभार विक्रम जी का !

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  13. दर्द से टूट रहा है मानस ...चश्मे-तर :(

    recent poem : मायने बदल गऐ

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  14. अत्यंत सटीक विचारों से परिपूर्ण समसामयिक विमर्श करती, सच्चाई को वयां करती हुई कविता....

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  15. इतनी झकझोर देने वाली रचना सटीक कविता लिखने के लिए साधुवाद ।
    सादर नमन |

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  16. इक नारी को घेर लें, दानव दुष्ट विचार ।
    शक्ति पुरुष की जो बढ़ी, अंड-बंड व्यवहार ।
    अंड-बंड व्यवहार, करें संकल्प नारियां ।
    होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ ।
    काट रखे इक हाथ, बने नहिं अत्याचारी ।
    कर पाए ना घात, पड़े भारी इक नारी ।।

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  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (06-01-2013) के चर्चा मंच-1116 (जनवरी की ठण्ड) पर भी होगी!
    --
    कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
    सादर...!
    नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ-
    सूचनार्थ!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  18. कभी कभी सोचती हूँ कि हर जीवित इंसान अपने हिस्से का कर्म पूरा कर ले तो ऐसे गुनहा कभी हो ही ना और ऐसे अपराध करने वाले ना तो इंसान है और ना जीवित

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  19. बहुत-बहुत आभार..... मार्मिक रचना को साझा किया...........दामिनी को श्रद्धांजलि है।

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  20. दिल्ली रेप की तदानुभूति है इस रचना में .

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  21. भावपूर्ण मर्मस्पर्शी एक सुन्दर कविता |

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  22. अच्छी रचना के लिए विक्रम जी को बधाई
    आभार साझा करने के लिए !

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  23. बहुत मार्मिक प्रस्तुति. विक्रम जी की कविता साझा करने के लिये धन्यबाद.

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  24. बहुत ही मार्मिक रचना!

    उस पुत्री को, उस भगिनी को

    जिसने पूरे देश को भले ही चंद

    दिनों के लिए ही जगा दिया,

    हार्दिक श्रद्धांजलि .....

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  25. विक्रम जी की प्रभावी रचना हिला जाती है अंदर तक ...
    बहुत मार्मिक चिंतन ...

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  26. दिल को छू लेने वाली रचना

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  27. अति सुंदर ,बधाई
    नई पोस्ट में :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in

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  28. ............
    क्या कहें ? कुछ कहने के लिए बचा ही नही... :(((
    विनम्र श्रद्धांजलि सुनयना को !
    ~सादर!!!

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  29. मन को उद्वेलित करती हुयी रचना !
    आभार साझा करने के लिए.

    सादर
    अनु

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  30. bhaavpurn lekhan Vikram ji ka...

    Dheerendra sir padhaane k liye dhanyavaad

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  31. बड़ा ही दिलकश लिखा है।
    जो सोचने को मजबूर कर
    देता है। चंद अलफ़ाज़ में बहुत
    सारे जज़्बात छुपे हैं।

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  32. दामिनी को श्रद्धांजलि और विक्रम सिंह जी की कलम को सादर नमन

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  33. धीरेन्द्र जी ...एक बहुत ही भावपूर्ण रचना से परिचित करवाया है आपने...बेहद मर्मस्पर्शी!

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  34. अच्छी रचना के लिए विक्रम जी को बधाई !

    साझा करने के लिए आभार आपको धीरेन्द्र सिंह भदौरिया जी !





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  35. मर्मस्पर्शी और भावों को झकझोर देने वाली रचना.

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  36. प्रकाशमान रचना
    ---
    नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

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  37. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 12/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  38. मर्मस्पर्शी रचना को साझा करने के लिए आभार

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आपकी टिप्पणियाँ मेरे लिए अनमोल है...अगर आप टिप्पणी देगे,तो निश्चित रूप से आपके पोस्ट पर आकर जबाब दूगाँ,,,,आभार,